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सोमवार, 31 अगस्त 2015

ओस में डूबता अंतरिक्ष विदा ले रहा है.....अंक चौंव्वालीस

सादर अभिवादन स्वीकारें

अकल कितनी भी तेज हो
नसीब के बिना कोई
कुछ भी नहीं जीत सकता
बीरबल काफी अकलमंद होने के बावजूद..
कभी बादशाह नही बन सका ।


चलिये चलते हैं मकसद की ओर...


अनुपमा पाठक की कलम से
एक घर सजाया प्यार से
सब से प्रीत बढ़ाई
कितनों से होती गयी आत्मीयता
फिर भी शुरू से आखिर तक रही मैं परायी


ओंकार केडिया की कलम से
मुझे याद आती हैं
वे बचपन की बातें,
लूडो,सांप-सीढ़ी का खेल,
आम के पेड़ से कैरियाँ तोड़ना,
मुंह अँधेरे उठकर
बगीचे से फूल चुनना.


रचना दीक्षित की कलम से....
बचपन से सुनती आई हूँ
आप सब की ही तरह
पैसा ही जीवन है.
पैसा आना जाना है.
पैसा हाथ का मैल है.


मुकेश कुमार सिन्हा की कलम से...
प्यार कुछ सायकल सा होता है न
जिसके पैडल तो ऊपर नीचे करने होते हैं
जबकि चक्का गोल होता है
पर बढ़ता है सीधे आगे की ओर  !!
खड़खडाता हुआ, कभी कभी डगमगाता हुआ भी !!

और ये रही आज की अंतिम पसंद

मीना चोपड़ा की कलम से....
ओस में डूबता अंतरिक्ष
विदा ले रहा है
अँधेरों पर गिरती तुषार
और कोहरों की नमी से।

चलती हूँ
तीज-त्योहारों का समय है
अभी ढेर सारे काम पड़े हैं

सादर..
यशोदा..








रविवार, 30 अगस्त 2015

ये बंधन तो अटूट है...-43 अंक


जय मां हाटेशवरी...

हर वर्ष  रक्षाबंधन के दिन...
 मुझे बहुत याद आती हैं...
वो बहनें...
जिन्होंने मुझे उस वक्त राखी बांधी...
जब मैं छात्रावास में...
घर से बहुत दूर था...
उस वक्त मुझे बहुत आवश्यक्ता थी...
उनके अपने पन की...
भली ही आज  उनकी राखी मुझ तक नहीं पहुंच रही...
ये भी आवश्यक  नहीं...
राखी हर वर्ष ही बांधी जा सके...
 राखी चाहे एक बार या सौ बार बांधी गयी हो...
ये बंधन तो अटूट है...
उन सब के सुखद भविष्य की कामना के साथ...
पेश हैं आज के 5 लिंक....


मुझको नश्वर चीज़ों की दिल से कोई दरकार नहीं।
संबंधों की कीमत पर कोई सुविधा स्वीकार नहीं।
माँ के सारे गहने-कपड़े तुम भाभी को दे देना।
बाबूजी का जो कुछ है सब ख़ुशी – ख़ुशी तुम ले लेना।

इस का एक ही उपाय है हम भाववाद (आदर्शवाद, दिखावा) का त्याग करें। यथार्थ की जमीन पर आएँ। हम में बोध हो कि परिवार में सब समान हैं भाई-बहिन भी और स्त्री-पुरुष
भी। परिवार में भी और समाज में भी सभी एक दूसरे के लिए हैं, सब मिल कर किसी एक की आवश्यकता को पूरा कर सकते हैं।  यह हमारी आदत बने, व्यवहार में दिखाई दे, तब
किसी को किसी भी चीज का अभाव नहीं खल सकता, न भौतिक वस्तुओं का न ही प्यार और स्नेह का।
राखी के इस त्यौहार का उद्घोष "हम सब साथ साथ हैं" होना चाहिए।


इसी ऐतिहासिक घटना की कहानी के आधार पर बाद में किसी चित्रकार ने अपनी कल्पना के आधार पर राणा सांगा (Rana Sanga) का पेड़ के नीचे सोते हुए चित्र बनाया जिसमें
पेड़ की छाया दूर होने के बाद धुप से सांगा को बचाने हेतु फन उठाया हुआ एक सांप उन पर छाया कर रहा है|
---------



जल्दी ले जा डाकिए,ये राखी के तार |
गूँथ दिया मैंने अभी,इन धागों में प्यार |
बड़ी सजीली राखियाँ , बेचे नेट हज़ार |
रची रात भर जागकर ,है दिल से उपहार |


जमाना जो बदले बदल जाने देना
बस दोस्तों के दिल में बड़ा प्यार रखना ।
अहम् का वहम कभी छू भी ना पाये
मुझको सदा अपना तलबगार रखना ।

धन्यवाद...

शनिवार, 29 अगस्त 2015

रक्षा बन्धन की बहुत बहुत बधाई




एक बहना का
यथायोग्य सभी को प्रणामाशीष



राखी के सम्बन्ध में अनेक कथा कहानी हम सबने पढ़ी सुनी है
आज भी कुछ पढ़ लिख लें

एक सूता जो बांधे सुत को सुता
निहाल जनित्री

पंखुरी की लेखनी

बड़ी बहना
माँ स्वरूपा
सम-उम्र बहना
सखी अनुरागी
छोटी बहना
प्यार लुटाती
समय पड़ने पर
रक्षा करती

अवनीश की लेखनी

आस की प्यास
एक हौसले की थपकी की
मैं हूँ न

श्याम जी की लेखनी

कानून से मिला हक़
धन का बंटवारा
नहीं करती संवेदनशील बहना
मइके के मिट्टी से स्नेह जोहती

अर्चना जी की लेखनी

साल में एक दिन
बहनों के लिए
समय क्यों नहीं
निकल पाता भाइयों का

चण्डीदत्त जी की लेखनी


फिर मिलेंगे ....... तब तक के लिए
आखरी सलाम


शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

कैसे घूरता हैं वोह नुक्कड़ पर खड़ा लड़का.....इक्चालिसवें पन्ने में

सादर अभिवादन स्वीकारेंं...

ख्वाब आँखों से गए
और नींद रातों से गयी...
वो जिंदगी से गए और
जिंदगी हाथों से गयी..!!

आगे हैं मेरी आज की पसंदीदा रचनाएँ....


नीलिमा शर्मा... निविया में
कैसे घूरता हैं वोह नुक्कड़ पर खड़ा लड़का
घर से स्कूल जाती नव्योवना को
नीली चुन्नी को देह पर लपेटे
छिपाने की कोशिश में
अपने अंग-प्रत्यंग को
अक्सर मिल जाती हैं उसकी नजर


रेवा दीदी....प्यार में
मन इतनी जल्दी
कैसे भर लेता है
ऊँची उड़ान ,
हवा से भी तेज़
चलता है ,


नीरज भाई.....किताबों की दुनियां में
हज़ारों मुश्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर इक फ़ायदा है पीठ पर खंज़र नहीं लगता

कहीं कच्चे फलों को संगबारी तोड़ लेती है
कहीं फल सूख जाते हैं कोई पत्थर नहीं लगता



सुशील भाई...उल्लूक टाईम्स में
झगड़े की
जड़ ही
नहीं रहेगी
एक और
दासता से
देश एक बार
और आजाद
हो जायेगा



दिनेशराय जी द्विवेदी.... अनवरत में...
भण्डारा (लघु कथा)
दोपहर बाद एक अच्छे कपडे पहने नौजवान आया और भिखारियों की पंक्ति में बैठ गया। परोसने वाले चौंके ये भिखारियों के बीच कौन आ गया। व्यापारियों में खुसुर फुसुर होने लगी। तभी एक नौजवान व्यापारी ने उसे पहचान लिया। वह तो नगर के सब से ज्यादा चलने वाले महंगे ग़ज़ब रेस्टोरेंट के मालिक का बेटा था। व्यापारियों ने कुछ तय किया और तीन चार उस के नजदीक गए। बोले -तुम तो ग़ज़ब के मालिक के बेटे हो न? तुम्हें यहाँ भिखारियों के साथ खाने को बैठने की क्या जरूरत?

विदा दें अब..
यशोदा.

आज सुनिए ये गीत....











गुरुवार, 27 अगस्त 2015

तू जिसे आदमी बनाता है, वो उसे इन्सान बनाती है.....चालीसवां पन्ना

सादर अभिवादन स्वीकारें

" नहीं हो सकता
कद तेरा ऊँचा
किसी भी माँ से ...
ऐ खुदा......
तू जिसे
आदमी बनाता है,
वो उसे इन्सान
बनाती है"

ये रही मेरी आज की पसंदीदा रचनाएँ....


अनीह ईषना में
सूरत-ए -आम और सीरत-ए -मामूली निकले हम तो क्या
हँस के ज़रा कर दो बिदा,
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है ।


मानसी में...
मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी
तुम बिन जीवन ही क्या होता
सूखा मरुथल, रात घनेरी


जिन्दगीनामा में.....
तुम्हारी दी हुई चीज़ जब
दरकती टूटती ..
अटकती बिगड़ती ..
फिसलती छिटकती है
तो ,पता नहीं क्यों..


स्वप्न मेरे में...
कहती है मोम यूँ ही पिघलना फ़िज़ूल है
महलों में इस चिराग का जलना फ़िज़ूल है

खुशबू नहीं तो रंग अदाएं ही ख़ास हों
कुछ भी नहीं तो फूल का खिलना फ़िज़ूल है


ज़ख्म…जो फूलों ने दिये में...
आजकल दर्द की गिरह में लिपटी हैं वर्जनाएं
कोशिशों के तमाम झुलसे हुए आकाश
अपने अपने दड़बों में कुकडू कूँ करने को हैं बाध्य
ये विडम्बनाओं का शहर है

इति....
सावन की विदाई हो रही हैं
जाते-जाते फिर से बरस गई..
क्या दिया इस बार सावन नें
नदी-नाले, ताल-तालाब सब
प्यासे ही रह गए इस सावन में

लोगों नें कहना छोड़ दिया.....
नदि-नारे न जाओ शाम पैंया पड़ूँ






बुधवार, 26 अगस्त 2015

बहुत असहनीय पीड़ा देता है....अंक-39


जय मां हाटेशवरी...

किसी अपने से बिछड़ने का गम...
बहुत असहनीय पीड़ा देता है....
पर जो आया है...
उसे जाना भी है...
ये रहे आज के 5 लिंक...

इस ज़माने में दाल - रोटी कमाने में
हौसला परास्त हो जाता है
ये जब देखती है
रात का अंधकार काले साए
अबला नारी चीख पुकार
अपहरण हत्या और अत्याचार
तब ये लाल हो जाती है
आरक्षण तो चाहिए ,कहता एक पटेल
सकते में सरकार भी ,बना रहा है रेल |
हमें हमारा चाहिए ,हक़ से सब सम्मान
वरना आता छीनना ,जागा हिंदुस्तान |


हम जीवन को कितने सीमित दायरे में समेट लेते हैं खुशियां सुविधाओं की कभी न ख़त्म होने वाली दौड़
के अंत में नहीं बल्कि हमारे आस-पास किसी न किसी कोने में हर वक्त मौजूद रहती हैं. बशर्ते हमें उन्हें ढूढ़ने की फुर्सत हो!
.................................................................................कोलोन (जर्मनी). दूसरे यात्री जब ट्रेन से उतरकर अपने घर जा रहे होते हैं, जर्मनी की कॉलेज स्टूडेंट लिओनी मुलर अपनी सीट पर जमी रहती है
लेकिन जैसा कि इस देश के हर योजना का मुफ्तखोर फायदा उठाते है इस योजना में भी हुआ| पंचायतों के अधीन कार्यान्वित होने वाली इस योजना में पंचायत प्रतिनिधियों
व सरकारी कर्मियों ने मिलीभगत कर कई ऐसे नाम जोड़ दिए जिन्हें मजदूरी की कोई जरुरत नहीं| फर्जी नामों के माध्यम से इस योजना का भी दुरूपयोग किया गया| योजना के
अंतर्गत करवाये गये ज्यादातर कार्यों में निर्धारित मापदंड का पालन नहीं किया गया| कार्य पर आने वाले मजदूरों ने बिना काम किये मजदूरी उठाई, काम पर आये भी दो
चार घंटे कार्य स्थल पर बिता कर चलते बने| इस तरह इस योजना ने हरामखोरी को पूरा प्रोत्साहन दिया| हरामखोरी की आदत पड़ने के चलते खेतों में मजदूरों की कमी हो
गई, जिससे कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ा| छोटे कुटीर उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हुये| क्योंकि जब मुफ्त में, बिना मेहनत किये धन मिल रहा है तो कोई मेहनत क्यों
करे|

कुछ इधर फेंकना
कुछ उधर फेंकना
बाकी शेष कुछ हवा
को हवा में ऊपर
को उछालना
ये सोच कर
शायद
किसी को कुछ
नजर आ जाये
और लपक ले जाये
उस कुछ नहीं में से
कोई कुछ कुछ
अपने लिये भी

धन्यवाद...

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

किसी ने देगची पर चढ़ाये शब्द .....अंक अड़तीस

जिन्दगी में 
दो चीजें 
कभी मत कीजिए .....
झूठे आदमी के साथ प्रेम 
और 
सच्चे आदमी के साथ गेम ।...

ये रही आज की पसंदीदा रचनाओं के सू्त्र....

















प्रतिभा की दुनिया में..
किसी ने दाल पकाई 
किसी ने मुर्ग
किसी ने देगची पर चढ़ाये शब्द 
जिसको जैसी आंच मिली 
उसकी वैसी बनी रसोई 





आलोक चान्टिया जी के ब्लाग से
भूत आदमी से ,
काफी अच्छा साबित ,
हो रहा है |
बलात्कार , छेड़छाड़ ,
उसे आज भी परहेज ,
हो रहा है


रंग-ए-जिंदगानी में.........
बहन वहीं जो ये कहें,  
मातृभूमि मान बढाना तुम्हें राखी की कसम है।
पिता वहीं जो ये कहें,  
रण में लड़ना ही तुम्हारा कर्म और धर्म है।


रचना रवीन्द्र से..
वाह...वो रंग बिरंगे
पालीथीन   
लाल, हरे, नीले, पीले, बैंगनी 
मिनटों में चट
मानों सफाई कर्मचारियों का दल था 
नहीं जानती 
कहाँ सहेजेंगे ये लोग 
इतनी दुआओं को.


और अंत में....

अंकल ...चंदा दो... कतर ब्योंत में
'पत्नी को देखते ही गुंडा नुमा नेता ने झुककर उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा, 'आंटी..देखिए न! हजार-पांच सौ रुपये के होली के चंदे के लिए अंकल किस तरह हुज्जत कर रहे हैं। आप समझाइए न इनको।

आज्ञा दीजिए...
यशोदा



















सोमवार, 24 अगस्त 2015

सच कभी अपने झूठ नहीं कहता है.....सैंतीसवां अंक

मुझे अच्छी लगती है 
दूसरे या तीसरे नंबर की वे बेटियां 
जो बेटों के इंतजार में जन्म लेती है....
- स्मृति आदित्य "फाल्गुनी"

पूरी कविता मुझे छूने से दिख जाएगी

सादर अभिवादन
आज की पसंदीदा रचनाओं के सूत्र....



काव्यसंसार से
मैं भटका तो जग था स्थिर, 
मैं स्थिर जग भटक रहा है...


















उलूक कथन...
‘उलूक’ किसी दिन 
दुनियाँ दिखाती है 
बहुत कुछ दिखाती है 
उसमें कितना कुछ 
बहुत कुछ होता है 


वीरांश की कलम से..
न शहर बचा, न घर.. और न घर में रहने वाले,
तन्हाई की धुप में सर छुपाने को दीवार ढूँढता हूँ|
जल रहा हूँ अंदर और पैरों के नीचे अंगार ढूढता हूँ…


मेरा मन में....
अकसर पढ़ा और सुना कि 
सुखी रहना चाहते हो तो 
किसी से अपेक्षा मत रखो 
पर क्या ये संभव है??? 


राजेन्द्र नागदेव..रचनाकार में
एक उम्मीद कभी-कभी इस तरह जगती है
जैसे पतझड़ में फूट पड़ी हो कोई कोंपल
कोख में सहेजे
संसार भर के फूलों का पराग

आज इस अंक का समापन करते-करते
एक गीत की याद आई....
आप भी सुनिए...और आज्ञा दीजिये यशोदा को
















रविवार, 23 अगस्त 2015

मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना--अंक 36

जय मां हाटेशवरी...

ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
 - अटल बिहारी वाजपेयी

अब खोलता हूं...आज के आनंद रूपी 5 लिंकों का   पिटारा...



इसे कैस्परस्की लैब ने डिजिटल एम्नेशिया का नाम दिया है। यानी अपनी जरूरत की सभी जानकारियों को भूलने की क्षमता के कारण किसी का डिजिटल डिवाइसों पर ज्यादा भरोसा
करना कि वह आपके लिए सभी जानकारियों को एकत्रित कर सुरक्षित कर लेगा। 16 से 34 की उम्र वाले व्यक्तियों में से लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने माना कि अपनी सारी जरूरत
की जानकारी को याद रखने के लिए वे अपने स्मार्टफोन का उपयोग करते है। इस शोध के निष्कर्ष से यह भी पता चला कि अधिकांश डिजिटल उपभोक्ता अपने महत्वपूर्ण कांटेक्ट
नंबर याद नहीं रख पाते हैं।




सवाल ये है कि
क्या उस रिश्ते से
रिहाई सुलझा पाएगी
उसकी ज़िंदगी की गिरहें
जो घेरें हैं उसे, उसके ज़ेहन
उसके जिस्म को
जवाब ये नही कि
खुल के जीने का हक़
उसको पा लेना चाहिए



कितने अभागे हो ना तुम
जो
ना कभी मेरे प्रेम के
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
ना जान पाते हो कि
कैसे जन्म लेती है कविता।
लेकिन कितने भाग्यशाली हो तुम
मेरे साथ तुम्हें समूची सांवल‍ी कायनात प्रेम करती है,
और एक खूबसूरत कविता जन्म लेती है
सिर्फ तुम्हारे कारण।





मौजजा हो कि अगर तुम चले आओ साथी
मैंने   दिए   उल्फ़त  के  राहों  में  जलायें  हैं
ये  ज़मी  ही नहीं  ये आसमां भी  चौंक जाए
कि  तेरी  आहट  पर  सब  कान   लगायें  हैं
मेरी  दुनिया  में  कुछ  और  ज़रूरी  ही  नहीं
मैंने   हर   ख़्वाब   महज़   तुमसे   सजायें  हैं



ऊँट के करवट बदलने भर से
बदल जाती हैं जिनकी सलवटें
मिला लिए जाते हैं
सिर से सिर , हाथ से हाथ
और बात से बात
वहाँ
मौकापरस्त नहीं किया करते




अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज
अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट
अंदर काला हृदय है, ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख
अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद
अगर फूल के साथ में, लगे न होते शूल
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाक़ूल
अंधा प्रेमी अक्ल से, काम नहीं कुछ लेय
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय
अगर चुनावी वायदे, पूर्ण करे सरकार
इंतज़ार के मजे सब, हो जाएं बेकार
मेरी भाव बाधा हरो, पूज्य बिहारीलाल
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल
काका हाथरसी जी के दोहे...

धन्यवाद...

शनिवार, 22 अगस्त 2015

तीज महोत्सव..पैंतीसवां अंक







सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष



सावन बिन तीज की चर्चा रहे
है न सब फीका
सावनी तीज सोमवार को बीत गया
रीत गया बात तो हम कभी भी कर सकते हैं


ब्लॉग मित्र की लेखनी


वैसे भी मैं बिहारी हूँ
बिहार में मिथिला के कुछ लोग सावन के तीज मनाते हैं
जिसे मधुश्रावणी के नाम से जाना जाता है
जिसमें नई वधू को पान के पत्ते से दागना
और जिसे जितना फोफला उठे
प्यार का चिह्न मानना
मुझे हमेशा खला

ब्लॉग मित्र की लेखनी




ब्लॉग मित्र की लेखनी




ब्लॉग मित्र की लेखनी

बिहार में भादो के तीज का महत्व ज्यादा है
मेरी दादी , माँ , देवरानी , सास जी वही करती थीं
चाची , भाभी , ननद करती हैं
मुझे तो बनने वाले पकवानों से मतलब रहा
मेरे छोटे भैय्या को तब तक चावल रोटी की भूख नहीं रहती है
जब तक पड़किया खजूर का डिब्बा भरा रहे


ब्लॉग मित्र की लेखनी




पड़किया बनाना एक कला है ..... 
सुघड़ है या नहीं ; 
पड़किया बनाने के आधार पर पहले तय होता था , 
कसौटी पर मैं भी कसी गई थी
सवाल था
एक किलो मैदा में कितने पड़किया बनाया जाता है ?
 जबाब आप भी दें


फिर मिलेंगे
तब तक के लिए
आखरी सलाम





शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

सीधा-सादा सा है ये अंक चौंतीसवां

वो पल भर की नाराजगियाँ,
और मान भी जाना पलभर में,
अब खुद से भी रूठूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं ।

सादर अभिवादन....

चलिए चलते हैं कुछ पढ़ने...


उसमें पत्थरों का असर आ गया

बोल दो चिराग से छुप कर रहे
तेज़ आंधियों का शहर आ गया


याद तुम्हारी आई 
इस दिल के कोने में बैठी 
प्रीति, हँसी-मुस्काई।


गढ़ा की मुख्य सड़क से अंदर के रास्ते पर 
सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों के साथ-साथ काले पत्थर 
अनेक रूपों में दिखाई देते हैं, 
जिसमे से एक विश्व प्रसिद्ध संतुलित शिला भी है


बात करता है वो, अहसान जता देता है

चूड़ियाँ चुभके हमेशा ही यही बतलायें
टूटता है जो कभी दर्द वो क्या देता है


उसकी आँखों की पगडंडियाँ 
दिल में नहीं जहन्नुम में खुलती थीं
लड़की के ऑफ शोल्डर ड्रेस की महीन किनारी में 
तलवार की धार सा तेज स्टील का धागा बुना हुआ था. 
उसका जिस्म महीन, धारदार जालियों में बंधा हुआ था. 
उसकी कमर पर हाथ रखते हुए हथेलियों में 
बारीक धारियां बनती गयीं थीं...

आज के इस अंक का समापन करता हूँ
आज्ञा दें
- दिग्विजय













गुरुवार, 20 अगस्त 2015

समय भूल जायेगा तुझे और मुझे.......तैंतीसवीं प्रस्तुति

अच्छे होते हैं ..
बुरे लोग....!!!
जो अच्छा होने का 
नाटक तो नहीं करते.


सादर अभिवादन....


चलते हैं देखने आज की चुनिन्दा रचनाएं...




आप कुछ सवालों के 
जवाब देकर पैसे कमा सकते हैं।


काट रही हूँ धीरे धीरे
जिससे प्यार सिर्फ प्यार रहे
न किसी को साधे न किसी को बांधे
न सधे  न बंधे कभी किसी बंधन में


तुझे और मुझे 
फिर हर खेत 
में कबूतरों की 
फूल मालाऐं 
पहने हुऐ रंग बिरंगे 
पुतले नजर आयेंगे 


ले अक्षत व डोरी
ताके ड्योढ़ी


फूल एक उपवन के
सींचा और सँवारा
माली ने
एक समान हमे
आज
भरा जीवन हम में

अब आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते हैं..














बुधवार, 19 अगस्त 2015

ज्योतित हों मुख नवम आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर--अंक 32

जय मां हाटेशवरी...


 

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर
व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयंकर

है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती,
जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर

बहुत संकुचित छोटा घर है, दीपालोकित फिर भी धुंधला,
वधू मूर्छिता, पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, कवि का मन गीला
"ये सब क्षनिक, क्षनिक जीवन है, मानव जीवन है क्षण-भंगुर" ।

ऐसा मत कह मेरे कवि, इस क्षण संवेदन से हो आतुर
जीवन चिंतन में निर्णय पर अकस्मात मत आ, ओ निर्मल !

इस वीभत्स प्रसंग में रहो तुम अत्यंत स्वतंत्र निराकुल
भ्रष्ट ना होने दो युग-युग की सतत साधना महाआराधना

इस क्षण-भर के दुख-भार से, रहो अविचिलित, रहो अचंचल
अंतरदीपक के प्रकाश में विणत-प्रणत आत्मस्य रहो तुम

जीवन के इस गहन अटल के लिये मृत्यु का अर्थ कहो तुम ।
क्षण-भंगुरता के इस क्षण में जीवन की गति, जीवन का स्वर

दो सौ वर्ष आयु होती तो क्या अधिक सुखी होता नर?
इसी अमर धारा के आगे बहने के हित ये सब नश्वर,

सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ मरण-गीत तुम सुंदर
तुम कवि हो, यह फैल चले मृदु गीत निर्बल मानव के घर-घर

ज्योतित हों मुख नवम आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर


गजानन माधव मुक्तिबोध

अब चलते हैं...आनंद के आज के सफर पर...
बहुत प्रसिद्ध खेल हैं कृपाण के,
कहां समान वह कलम-कमान के,
अचूक हैं निशान शब्द-बाण के,
कलम लिए हुए कभी न तुम डरो।
समस्त देश की बसेक टेक हो,
समस्त छिन्न-भिन्न जाति एक हो,
विमूढ़ता जहां वहाँ विवेक हो,
यही प्रभाव शब्द-शब्द में भरो।


भीगते तो होंगे तुम्हारे भी कुछ लफ्ज़ 
मेरे याद के भरे बादल बरसते तो होंगे
चलती तो होंगी तुम्हारे शहर भी हवाएँ
मेरे नाम के पत्ते शाख से गिरते तो होंगे


दिखाये देखे सपने की
दुनियाँ फिल्म देखने
के दरम्यान के तीन
घंटे की बस एक
फिल्म हो जायेगी
हर सीन वाह वाह
और जय जय का
होता चला जायेगा
कैसे नहीं दिखेगा
आयेगा नहीं भी
तब भी फिल्म का
अंत सकारात्मक
कर ही दिया जायेगा


साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ,
जाके हिरदै  साँच है ,ताके हिरदै  आप।
उसने ऐद किया आइन्दा गलती न दोहराने का सत्यसंकल्प कर लिया। उसके लिए यही प्रायश्चित की कसौटी सिद्ध होगी उसे खुद पे यकीन है। पूरा यकीन ,वह आइन्दा अपने आसपास
को पूरी तवज्जो देगा।


लेखक और प्रकाशन समूह हिंदी के पाठक वर्ग का रोना रोते हैं कि हिंदी भाषा का पाठक वर्ग कम होता जा रहा है लेकिन वे इसकी कमियों को ढूंढने का प्रयास नहीं करते.जरूरत
इस बात की है मूल भाषा से हिंदी में अनुवाद करते समय उसके भाव तो यथावत रहें और यथासंभव हिंदी के शब्दों का प्रयोग हो.


लेकिन हिन्दी में ऐडसेंस विज्ञापन लाने की आवश्यकता क्यों महसूस की गयी? इसका कारण यह की समूचे उत्तर भारत और मध्य भारत में हिन्दी सर्वाधिक बोली जाने वाली
भाषा है। यदि आप भारत में ऑनलाइन उभरते हुए बाज़ार में अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहते हैं तो आपको हिन्दी बोलने वालों से उनकी भाषा संवाद करना होगा। आइए देखते हैं
कि गूगल ऐडसेंस द्वारा तैयार की गयी इंफ़ोग्राफ़िक इस बारे में क्या दर्शा रही है।


धन्यवाद।

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

अंक इक्तीसवां कुछ अलग सा कहता है....

सुना है... 
तुम्हारी एक निगाह से 
क़तल होते हैं लोग,
एक नज़र ....
हमको भी देख लो
कि ज़िन्दगी अब 
अच्छी नहीं लगती…

सादर अभिवादन....

चलिए देखते हैं 
मेरी और आपकी पसंद में फर्क......













सच में अगर दिल 
साफ होता है तो 
पूजा मस्जिद में 
क्यों नहीं की जाती है 
और मंदिर में नमाज 
क्यों कभी नहीं 
कहीं भी पढ़ी जाती है । 





फोटोशॉप की सफलता के बाद अब मैं आपके लिए लाया हूँ 
Coreldraw का कोर्स हिंदी में यानि Coreldraw in hindi












कुछ समय से
घर भर गया है
मेहमानों से.
घर ही नहीं 
शरीर, मन, मस्तिष्क
चेतन, अवचेतन.
ये मात्र मेहमान नहीं














भविष्य ने बुलाया था तुम्हें 
तरक्की ने रास्ता निहारा था 
तुम्हारी अपनी ज़रूरतें थीं 
हमेशा अपनी सहूलियतें 
सब चुना अपनी मर्ज़ी से
















हज़ारों मुश्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में 
मगर इक फ़ायदा है पीठ पर खंज़र नहीं लगता 

कहीं कच्चे फलों को संगबारी तोड़ लेती है 
कहीं फल सूख जाते हैं कोई पत्थर नहीं लगता


और विदा लेने की इज़ाज़त दें...

तू याद रख, या ना रख...
तू याद है, ये याद रख....!!

-दिग्विजय

















सोमवार, 17 अगस्त 2015

माल बढ़िया लगे तो मुफ्त उड़ा लो यारो.... अंक तीसवां

सादर अभिवादन....
देखते ही देखते
एक माह व्यतीत हुआ

आप सभी के सहयोग से
इस ब्लाग ने एक माह की
उम्र पा ली है....


नहीं मांगती ऐ खुदा कि,
जिंदगी सौ साल की दे !
दे भले चंद लम्हों की,
लेकिन कमाल की दे ….!!

चलिये चलें लिंक की ओर...


कमरा खाली…
मैं अकेली…… 
आँखें भरी भरी
और दिल भारी


आजु बतकही राजनीति कै, 
जहिकी बातन कै ना छ्वार
पूरे देश म एकुई पट्ठा, 
चारिउ तरफ रहा ललकार!!


दूरी है
और है वो
पास भी...
कितने
छली हैं
ये एहसास भी...


माल बढ़िया लगे तो मुफ्त उड़ा लो यारो 
कौन मेहनत करे, हराम की खा लो यारो !

इसे लिख के कोई दुष्यंत मर चुका यारो  !
उसकी शैली से ज़रा नाम कमा लो यारो ! 


न डोंगरी न तमिल न कन्नड़ 
न ही अरबी उर्दू या फारसी 
न हिंदी संस्कृत या रोमन 
कोई भी तो मेरी भाषा नहीं 


कल रात ही मद्रास से लौटी हूँ
तीसवीं प्रस्तुति का मोह 
नहीं छोड़ पाई....

आज्ञा दीजिए यशोदा को

और सुनिये ये गीत..
















रविवार, 16 अगस्त 2015

एकता और सफलता भारत की पूंजी, शक्ति है, इस पूंजी पर दाग नहीं लगना चाहिए।...-29वां अंक

जय मां हाटेशवरी...

125 करोड़ लोगों की भागीदारी होगी तो देश हर पल 125 कदम आगे बढ़ेगा।....
 हमें सिर्फ विकास पर ध्यान देना होगा। एकता बिखरने से सपने चूर-चूर हो जाते हैं।...
 -सांप्रदायिकतावाद का जूनुन, जातिवाद के जहर को नहीं पनपने देना है।...
 एकता और सफलता भारत की पूंजी, शक्ति है, इस पूंजी पर दाग नहीं लगना चाहिए।...
ये शब्द हैं   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीके... जो उन्होंने   आजादी की 69वीं सालगिरह पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहे...



अब आप   के लिये...
">भगतसिंह के लेख एवं दस्तावेज
अब अपने इस आनंद के सफर को...और आनंददायक बनाने के लिये पढ़ते हैं ये 5 रचनाएं...

 फिर  धुआं  दिखने  लगा   संसद  में है।
उसकी आदत में निजामी,....कुछ तो है।।
मज़हबी साया में देखो हुश्न बेपर्दा हुआ ।
हो गयीं वह भी  किमामी,.....कुछ  तो है ।।
जिसकी  सत्ता  थी  नहीं   उसको  कबूल।
 दे  रहा  है  वो  सलामी ,....कुछ  तो  है ।।
पुख्ता   सबूतो   पर  मिली  फाँसी  उसे ।
क्यों  हुई   ये   ऐहतरामी,....कुछ तो है ।।
बापू - माँ  का   शक्ल  दागी  हो  गया है।
मैली   चादर   रामनामी ,....कुछ   तो  है ।।
है  खबर   शायद   इलेक्शन  हांरने   की।
देखिये    बद  इंतजामी,.... कुछ  तो  है ।।


इसी समुदाय का कोई सदस्य अगर अपनी पसंद का करियर चुनना चाहता है उसके पास तमाम योग्यता और क्षमता के साथ आगे बढ़ने का जज़्बा भी है लेकिन क्या उसके लिए रास्ता
उतना ही आसान होता है जितना कि हम तथाकथित सामान्य लोगों के लिए...हम खुद को सामान्य कैसे कह सकते हैं अगर हम इस समुदाय (हिजड़ा या ट्रांसजेंडर्स) को खुशी के
मौकों पर नाचने-गाने के अलावा कहीं और देख ही नहीं सकते...

भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने 14 फरवरी 2014 को ऐतिहासिक फैसले में इस समुदाय को थर्ड जेंडर की पहचान दी...यहीं नहीं सरकार से इन्हें सामाजिक और आर्थिक तौर
पर पिछड़े समुदाय के तौर पर नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने के लिए भी कहा। लेकिन सिर्फ कोर्ट के फैसले पर ही बात खत्म नहीं हो जाती...इस समुदाय को पूरा
न्याय तब मिलेगा जब समाज भी इनके लिए अपनी सोच को बदले...इस बात को समझे कि इस समुदाय को भी सम्मान के साथ रहने का अधिकार है जितना कि मुझे और आपको...मेरा यही
मानना है कि नौकरियों और शिक्षा में अगर किसी को वास्तव में ही आरक्षण की ज़रूरत है तो इसी समुदाय को है।

नहीं चाहते हम दुनिया को अपना दास बनाना
नहीं चाहते हम औरों के मुँह की रोटी खा जाना
सत्य न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा
हिन्द देश का प्यारा ..........................
हम कितने सुख सपने लेकर इसको फहराते हैं
इस झंडे पर मर मिटने की कसम सभी खाते हैं
हिन्द देश का यह झंडा घर-घर में लहराएगा
हिन्द देश का प्यारा ..........................

आजाद देश के आजादी के आदी हो चुके आजाद लोगों को एक बार पुन: आजादी की ढेर सारी शुभकामनाऐं


खुशी खुशी शामे दावत
की तैयारी में जुट जायें
आजादी के होकर गुलाम
फिर वही सब रोज का
करने को वही सब काम
एक गीता बगल में दबा
कर शुरु वहीं से जहाँ
रुके थे फिर से शुरु हो जायें

सन 2011 में जब देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरू हुआ तो कहा जा रहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कानून बन गया तो दिल्ली और मुम्बई के कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स
जेलों में तब्दील हो जाएंगे। कानून बने एक साल से ज्यादा हो गया, अभी कुछ हुआ नहीं। पर इससे निराश होने की जरूरत भी नहीं। यह सिर्फ संयोग नहीं है 1991 के उदारीकरण
के बाद से घोटालों का आयाम अचानक बढ़ा है। पहले लाख-दस लाख के होते थे, फिर करोड़ों के होने लगे। अब अरबों के होते हैं। शेयर बाजार घोटाला इनमें पहला था।

अंत में एक निवेदन...
मैंने इस 15 अगस्त से  हमारा अतीत नाम से  एक सामूहिक ब्लौग प्रारंभ किया है। सभी संमानित  रचनाकार इस शुभ कार्य में इस ब्लौग का  रचनाकार बनकर  मुझे  सहियोग दें।  तथा इस   ब्लौग पर केवल देश प्रेम, हमारा गौरवमयी इतिहास तथा हमारी अनुपम सभ्यता संस्कृति से संबंधित रचनाएं प्रकाशित करें, जिससे  इस प्रकार की रचनाओं का एक बड़ा संकलन बन सके।   इस के लिये आप मुझे मेरी ईमेल kuldeepsingpinku@gmail.com पर संपर्क करें...
धन्यवाद।

शनिवार, 15 अगस्त 2015

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई के संग अशेष शुभकामनायें






वंदे मातरम्




जय जवान जय किसान


लोकतंत्र हैं आ गया, अब छोड़ो निराशा के विचार को
बस अधिकार की बात ना सोचों, समझों कर्तव्य के भार को
भुला न पायेगा काल, प्रचंड एकता की आग को
शान से फैलाकर तिरंगा, बढ़ाएंगे देश की शान को
बीत जायेगा वक्त भले, पर मिटा ना पायेगा देश के मान को
ऐसी उड़ान भरेंगे, दुश्मन भी होगा मजबूर, ताली बजाने को




खून से मिली आजादी
बस हमें याद यही रखनी



ना हिन्दू बन कर देखो 
ना मुस्लिम बन कर देखों
बेटों की इस लड़ाई में 
दुःख भरी भारत माँ को देखो




बचना ऐसे मेहमाँ से


खुद राजा बन बैठता मेजमाँ पर रजा चलाता है
गुलाम खुद के घर में रंक टुकड़ो में बाँट बनाता है



एकता ही संबल हैं, तोड़े झूठे अभिमान को
कंधे से कंधा मिलाकर, मजबूत करें आधार को
इंसानियत ही धर्म हैं, बस याद रखें, भारत माता के त्याग को
चंद पाखंडी को छोड़कर, प्रेम करें हर एक इंसान को
देश हैं हम सबका, बस समझे कर्तव्य के भार को
नव युग हैं आ गया, अब छोड़ो निराशा के विचार को 






क से कुबेर क से कंगाल कहो है न वश की बात
मेहमाँ न रहे बसे ज्यादा दिन जो बाहर औकात




धर्म ना हिन्दू का हैं ना ही मुस्लिम का 
धर्म तो बस इंसानियत का हैं 
ये भूख से बिलकते बच्चो से पूछों 
सच क्या हैं झूठ क्या हैं 



कुछ ने स्वार्थवश धर्म जाति की राख उड़ाई है
बेशर्म खुद संस्कार अक्स पे कालिख लगाई है



किसी मंदिर या मस्जिद से नहीं 
बेगुनाह बच्चे की मौत पर किसी माँ से पूछो
देश का सपूत बनाना हैं तो कर्तव्य को जानो 
अधिकार की बात न करों देश के लिए जीवन न्यौछारों



जय हिन्द


फिर मिलेंगे तब तक के लिए आखरी सलाम






विभा रानी श्रीवास्तव






शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

अच्छा संकेत है देश अच्छी दिशा में जा रहा है.......अंक सत्ताईस

सादर अभिवादन बाद में
पहले एक सही 

और सटीक
समाचार है कि
अच्छा संकेत है देश अच्छी दिशा में जा रहा है
सत्ता ईशों का कथन ऐसा ही है....

सादर अभिवादन...

चलिए चलें..... आगे बढ़ें..


छोटे छोटे टांको से 
दर्द की तुरपाई की
खिलखिलाहट पैच
दरके की भरपाई की


बादल...
धूप...
पवन...

बारिश...
छाँव...
सिहरन..


अच्छा संकेत है 
देश अच्छी दिशा 
में जा रहा है 
‘उलूक’ की आदत है 
लिखे जा रहा है 
क्या फर्क पड़ता है 
कौन पढ़ने आ रहा है । 


सोच बात नई उड़ान की, 
नए ख्बाव बुन 
मेरे अल्फ़ाज़ों पर न जा, 
तू मुझको सुन । 


नही सुलझा पायी,
उन उलझनों को जिसमे..
तुम उलझा कर गये थे...
बंध सी गयी उन उलझनों में,


आज्ञा दीजिए....
देवी जी अपने 

स्वास्थ्य फॉलो-अप के लिए
चेन्नई गई हुई है
संभवतः सोमवार को फिर मिलेंगे

स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ..
-दिग्विजय













गुरुवार, 13 अगस्त 2015

दिमाग वालों की दुनिया में दिल ढूँढना भी एक कला है..... अंक छब्बीसवाँ

सादर अभिवादन...
फिर उपस्थित हूँ...
अपनी पसंदीदा रचनाएं ले कर....


माना कि इस दुनिया में हर शख्स ठोकरों से पला है,
दिमाग वालों की दुनिया में दिल ढूँढना भी एक कला है.!!

तो चलें ....

एक अहदे वफ़ा अब हुआ चाहिए
साथ हमको सनम आपका चाहिए

अब तलक ख़ूब लू के थपेड़े सहे
चाहिए बस हमें अब सबा चाहिए


जन्मदिन तुम्हारा 
सार्थक है मेंरे लिए 
नव जीवन दिया 
मेरी जिन्दगी में आकर,.. 
तुमने मुझे अपनाकर,.. 


धीरे धीरे सरकते हुए 
पता ही नहीं चला कब 
दूरियां इतनी बढ़ गयीं 
कि हम दो किनारे हो गये


तेरे जैसे फालतू 
निर्दलीय के लिये 
बता कौन करायेगा 
डेढ़ रुप्पली के घपले 
करने की आदत 
हो जिसको उसे
देख कर स्टिंग करने 
वाले के साथ का कैमरा 
और कैमरे वाला 
भी शर्मायेगा 


पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत
कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना

आज की मेरी पसंद
प्रस्तुत है.....
विदा दोस्तों
-दिग्विजय














बुधवार, 12 अगस्त 2015

आनंद का 25वां संकलन...अंक 25



जय मां हाटेशवरी...

हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को,
यकायक हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।
आसमां क्या यहां बाक़ी था ग़ज़ब ढाने को?
क्या कोई और बहाना न था तरसाने को?
फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी,
क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फरियाद कभी,
याद आएगा किसे ये दिले-नाशाद कभी,
हम कि इस बाग़ में थे, कै़द से आज़ाद कभी,
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को!
दिल फ़िदा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है, वो माता की नज़र करते हैं,
ख़ाना वीरान कहां, देखिए घर करते हैं,
अब रहा अहले-वतन, हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी विराने को!
देखिए कब यह असीराने मुसीबत छूटें,
मादरे-हिंद के अब भाग खुलें या फूटें,
देश-सेवक सभी अब जेल में मूंजे कूटें,
आप यहां ऐश से दिन-रात बहारें लूटें,
क्यों न तरजीह दें, इस जीने से मर जाने को!
कोई माता की उमीदों पे न डाले पानी,
ज़िंदगी भर को हमें भेज दे काले पानी,
मुंह में जल्लाद, हुए जाते हैं छाले पानी,
आबे-खंजर को पिला करके दुआ ले पानी,
भर न क्यों पाए हम, इस उम्र के पैमाने को!
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर,
हमको भी पाला था मां-बाप ने दुख सह-सहकर,
वक़्ते-रुख़सत उन्हें इतना ही न आए कहकर,
गोद में आंसू कभी टपके जो रुख़ से बहकर,
तिफ़्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!
देश-सेवा ही का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की क़समें,
सरफ़रोशी की, अदा होती हैं यो ही रस्में,
भाई ख़ंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं में हैं जल जाने को!
नौजवानो, जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके,
आपके अजबे-बदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद चाक हो, माता का कलेजा फट के,
पर न माथे पे शिकन आए, क़सम खाने को!
अपनी क़िस्मत में अज़ल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था, मिहन रक्खा था, ग़म रक्खा था,
किसको परवाह थी, और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-गुरबत में क़दम रखा था,
दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को!
अपना कुछ ग़म नहीं लेकिन ये ख़याल आता है,
मादरे हिंद पे कब से ये ज़वाल आता है,
देशी आज़ादी का कब हिंद में साल आता है,
क़ौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुंतज़िर रहते हैं हम ख़ाक में मिल जाने को!
मैक़दा किसका है, ये जामो-सबू किसका है?
वार किसका है मेरी जां, यह गुलू किसका है?
जो बहे क़ौम की ख़ातिर वो लहू किसका है?
आसमां साफ़ बता दे, तू अदू किसका है?
क्यों नये रंग बदलता है ये तड़पाने को!
दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पूछो,
मरने वालों से ज़रा लुत्फ़े-शहादत पूछो,
चश्मे-मुश्ताक़ से कुछ दीद की हसरत पूछो,
जां निसारों से ज़रा उनकी हक़ीक़त पूछो,
सोज़ कहते हैं किसे, पूछो तो परवाने को!
बात सच है कि इस बात की पीछे ठानें,
देश के वास्ते कुरबान करें सब जानें,
लाख समझाए कोई, एक न उसकी मानें,
कहते हैं, ख़ून से मत अपना गिरेबां सानें,
नासेह, आग लगे तेरे इस समझाने को!
न मयस्सर हुआ राहत में कभी मेल हमें,
जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें,
एक दिन को भी न मंजूर हुई बेल हमें,
याद आएगी अलीपुर की बहुत जेल हमें,
लोग तो भूल ही जाएंगे इस अफ़साने को!
अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली,
एक होती है फ़कीरों की हमेशा बोली,
ख़ून से फाग रचाएगी हमारी टोली,
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली,
कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को!
नौजवानो, यही मौक़ा है, उठो, खुल खेलो,
खि़दमते क़ौम में जो आए बला, तुम झेलो,
देश के सदके में माता को जवानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं, ले लो,
देखें कौन आता है, इर्शाद बजा लाने को!

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 [राम प्रसाद बिस्मिल  जी द्वारा   सन 1929 में  रचित] 

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अब लेते हैं आनंद...आज के 5 लिंकों का...

प्रेरक कहानी- जो दिख रहा है, ज़रूरी नहीं कि वही सच हो
है।'
दोस्तों, ऐसा अक्सर हमारे साथ भी होता है। हम किसी भी घटना अथवा बात की गहराई को समझ नहीं पाते और लोगों के साथ अपने सम्बंध खराब कर लेते हैं, जबकि उसके पीछे
की वजह दूसरी होती है। इसीलिए जब भी कभी ऐसा अवसर आए, जिससे आपके रिश्ते प्रभावित हो रहे हों, वहां तत्काल कोई निर्णय न लें। क्योंकि हीरे की परख के लिए अनुभव
का ज्ञान जरूरी होता है। हो सकता है कि बिना ज्ञान/अनुभव के आप कोई गलत निर्णय ले बैठें और उसकी वजह से आपको सारी उम्र पछताना पड़



मेरी तन्हाई

गुजर गया
वो ख्वाबों का कारवां
आज फिर से
खड़ी हूँ
दोराहे पर
इंतज़ार में
किसी दस्तक के
मैं और मेरी तन्हाई .....






कवि का दीपक / हरिवंशराय बच्चन

शत-शत दीप इकट्ठे होंगे
अपनी-अपनी चमक लिए,
अपने-अपने त्याग, तपस्या,
श्रम, संयम की दमक लिए।
अपनी ज्वाला प्रभा परीक्षित
सब दीपक दिखलाएँगे,
सब अपनी प्रतिभा पर पुलकित
लौ को उच्च उठाएँगे।


मतदान के पहले

कोई भी सत्ता में आए
रही सदा और रहेगी आगे भी
जनता की झोली खाली
यूं ही छली जायेगी
आम जनता बेचारी


उद्यानिकी स्वर्ण क्रान्ति अभियान

बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हर संभव प्रयास करते रहने की सख्त जरूरत है। इसके लिए सरकारी/गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा आयोजित आयोजनों का लाभ उठाते
हुए निरंतर जन-जन तक पर्यावरण की शुद्धि के लिए तथा प्रदूषण से मानवों की रक्षा के लिए प्रचार-प्रचार कर लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए संकल्पित होना होगा।


रुको प्रणाम इस ज़मीन को करो,
रुको सलाम इस ज़मीन को करो,
समस्त धर्म-तीर्थ इस ज़मीन पर
गिरा यहां लहू किसी शहीद का।

धन्यवाद
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