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गुरुवार, 17 मार्च 2016

244....जब जनाजे से मजा नहीं आता है दोबारा निकाला जाता है

सादर अभिवादन..
संजय जी आज फिर नहीं हैं

देखिए आज की चुनिन्दा रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ....

रूठने मनाने में
उम्र गुजर जाती  है
शाम कभी होती है
कभी धूप निकल आती है
चंद दिनों की खुशियों से
जिन्दगी सवर जाती है


कल रात मे नींद नही आई 
बहुत देर तक करवटें बदलने के बाद 
कब झपक गया पता नहीं
जब आँख खुली तो 
फगुनायी चेतना मे सराबोर था 



बुरा नहीं है फेसबुक पर दर्ज होना लेकिन किस हद तक ? छद्म प्रशंसाओं के फेर में खुद को खुदा समझ बैठना अपना नुकसान करना ही है। अटैंशन सीकिंग बिहेवियर कहां ले जायेगा पता भी नहीं चलेगा। यह तो ध्यान में रखना ही होगा कि जो जगह हमारी जिंदगी के कुछ लम्हों को हमारी कुछ बातों को कहने सुनने के मंच के तौर पर थी, उसे कहीं जरूरत से ज्यादा महत्व तो नहीं मिलने लगा है।


मन तो करता है 
uninstall कर के 
दुख, दर्द और विरह 
install कर दूँ 


सपने में....शशि पुरवार
धुआँ धुआँ होती  व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ
सपनों की मनहर वादी है
पलक बंद कर ख्वाब सजाओ



ये है आज की शीर्षक रचना का अंश
सच को लपेटना
किसको कितना
आता है
ठंड रक्खा कर
'उलूक' तुझे
बहुत कुछ
सीखना है अभी
आज बस ये सीख
दफनाये गये
एक झूठ को
फिर से निकाल
कर कैसे
भुनाया जाता है ।


इज़ाज़त दें
दिग्विजय

10 टिप्‍पणियां:

  1. आप महानुभावो से सादर निवेदन है की कृपया मेरा ब्लॉग पढ़े और उचित मार्गदर्शन दे , ब्लॉग का लिंक नीचे है ।

    Sumitsoniraj.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    सादर प्रणाम
    सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    शानदार संयोजन
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति । आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के सूत्र 'जब जनाजे से मजा नहीं आता है दोबारा निकाला जाता है' को आज की हलचल में शीर्षक रचना का स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभप्रभात...
    सुंदर संकलन...
    आभार ततकाल प्रस्तुति बनाने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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