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गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

279....सच्चाई मिटती नहीं, बनती है सरताज

सादर अभिवादन स्वीकारें
तपन सच मे असहनीय होता जा रहा है
अप्रैल में ये हाल है तो...
मई और जून की कल्पना कीजिए...

आज की चुनिन्दा रचनाओं के अंश....


खुदा कसम अगर वो बेनकाब हो जाये 
बरसो पुराना सच मेरा ख्वाब हो जाये 











कभी सोचता हूँ
तो याद आता है मुझे
अपना अक्श,
गड्ड मड्ड,
आकार रहित,
बिना आँख कान नाक ,
एकदम सपाट चेहरा













खून अपना सफ़ेद जब होता,
दर्द दिल में असीम तब होता।

दर्द अपने सदा दिया करते,
गैर के पास वक़्त कब होता।



अब किस्मत का दुखड़ा क्या रोऊँ,
कल सब जो खुसी में सरीक थे मेरी
और मैं कहीं और ही था
गुजरे कल के गहरे समुन्दर में डूबा हुआ











वर्तमान में आम इंसान को दिन प्रतिदिन जल के घटते हुए स्तर एवं प्रदूषण की भीषण समस्या का सामना करना पड़ रहा है ! ज़मीन के नीचे का जल स्तर कम वर्षा के कारण हर रोज़ घट रहा है

ये आज की शीर्षक रचना की कुण्डली










अच्छाई की राह पर, नित करना तुम काज 
सच्चाई मिटती नहीं, बनती है सरताज 
बनती है सरताज, झूठ की परतें खोले 
मिट जाए संताप, मौन सी सरगम डोले 
कहती शशि यह सत्य, प्रेम से मिटती खाई 
दंभ, झूठ का हास, चमकती है सच्चाई।

इज़ाज़त दीजिए यशोदा को
फिर मिलेंगे...


6 टिप्‍पणियां:

  1. आज के चयनित सभी लिंक्स बहुत ही खूबसूरत ! जल प्रदूषण की समस्या पर मेरे आलेख को आज के सूत्रों में सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से आभार यशोदा जी ! धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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