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मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

879....वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.”

जय मां हाटेशवरी....
काव्य क्षेत्र के शेरोमणी व हिंदी साहित्य के 
सबसे बड़े रत्न 
राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त 
का निधन आज के दिन ही 
यानी 12 दिसंबर को  हुआ था....
सर्वप्रथम इन्हे कोटी-कोटी नमन....

जीवन की ही हो जय
मृषा मृत्यु का भय है
जीवन की ही जय है .
जीव की जड़ जमा रहा है
नित नव वैभव कमा रहा है
यह आत्मा अक्षय है
जीवन की ही जय है.
नया जन्म ही जग पाता है
मरण मूढ़-सा रह जाता है
एक बीज सौ उपजाता है
सृष्टा बड़ा सदय है
जीवन की ही जय है.
जीवन पर सौ बार मरूँ मैं
क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं
यदि न उचित उपयोग करूँ मैं
तो फिर महाप्रलय है
जीवन की ही जय है.

 छोड़ दी थक-हारकर
आधा अधूरा..
बोली अपने आप से...
चलूँ दीदी के पास...
आज दिन तीसरा है
मातारानी का...
कर आऊँ दर्शन दीदी के.....
वो भी तो माँ है मेरी..
----
आदरणीय दिव्या अग्रवाल
कविता-मंच पर
राजा हो रंक पेट तो सताएगा
उनको भी तो चूल्हे से आग लेने दो
नज़दीक वो कभी नज़र न आएंगे
सोए हुए हैं शेर जाग लेने दो
हम आस्तीन में छुपा के रख लेंगे
इस शहर में हमको भी नाग लेने दो
या जुगनुओं को छोड़ दो यहाँ कुछ पल
या फिर हमें भी इक चराग़ लेने दो 
-----
आदरणीय दिगंबर नासवा
स्वप्न मेरे...........पर...

बताओ ,बेटी-बहन किधर से
गर्म माँस नहीं होतीं  ?
फिर तो अहल्या हो ,उपरंभा हो ,
निर्भया या जायरा हो,
क्या फ़र्क पड़ता है ?
भयभीत हो दबा ले भले 
टेढी दुम ,
----
आदरणीय प्रतिभा सक्सेना
 शिप्रा की लहरें पर...
कोई साथ नहीं देता बुरे समय में
जब भी नज़र भर देखती है
यही दुविधा रहती है
कहीं राह न भूल जाए !
पर ऐसा नहीं होता
भ्रम मात्र होता है !
---
आदरणीय आशा सक्सेना
आकांक्षा पर....
खुश भी होती है
तस्‍वीरेंं
गमगीन भी होती है
सह लेती है
सब, सभी कुछ
आदरणीय रौशन जसवाल विक्षिप्‍त
आधारशिला पर....
इन बच्चों की मौतें; मौतें न होकर मिट्टी के खिलौने टूट रहे हो...अरे भई, खिलौने भी टुटते हैं तो दिल में दर्द होता हैं...ये तो जीते-जागते बच्चे थे! किसी माँ-बाप के जिगर के टुकड़े...कितनी नाजों से पाला होगा उनके माँ-बाप ने उन्हें...उनकी मौत पर कितने खून के आँसू रोएं होंगे वे...!! सचमुच कभी-कभी लगता हैं कि कितने संवेदनाहीन हो गए है हम। यदि ये घटना हमारे अपने बच्चे के साथ होती या किसी बड़े नेता के बच्चे के साथ होती तब शायद हमारे या बड़े-बड़े नेताओं के कान पर जू रेंगती! अभी तो सभी के लिए इन बच्चों की मौतें सिर्फ़ आंकड़े बन कर रह गई हैं। यहां इतने मरे...और वहां उतने मरे...बस! कुछ समय पहले जापान के एक ख़बर की हमारे मीडिया में बहुत
चर्चा थी। जिसके अनुसार जापान में सिर्फ़ एक बच्ची स्कूल जा सके इसलिए स्पेशल एक ट्रेन उसके गांव तक आती थी। सिर्फ़ एक बच्ची के लिए ट्रेन! इतना महत्व दिया जाता
हैं जापान में देश की एक आम बच्ची को और हमारे यहां सैकडों बच्चों के जान की कोई किंमत नहीं हैं। यहां पर सभी लोग सिर्फ़ एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में
व्यस्त हैं।
----
आदरणीय  ज्योति देहलीवाल
आपकी सहेली  पर...
 
जाग गयी है’, ‘बड़ी बाई साहेब’ और ‘डेरा उखड़ने से पहले’ कहानियों में हम भी स्त्री की हृदय की विषम वीथियों में जैसे वन्दना जी के हमराह बन जाते हैं ! ‘हवा उद्दंडहै’, ‘बातों वाली गली’ और ‘आस पास बिखरे लोग’ वास्तव में इतनी यथार्थवादी कहानियाँ हैं कि ज़रा इधर उधर गर्दन घुमा कर देख लेने भर से ही इन कहानियों के पात्र सशरीर हमारे सामने आ खड़े होते हैं !
‘बातों वाली गली’ कहानी संग्रह की हर कहानी हमें एक नए अनुभव से तो परिचित कराती ही है हमारी ज्ञानेन्द्रियों को नए स्वाद का रसास्वादन भी कराती है !
पुस्तक नि:संदेह रूप से संग्रहणीय है ! इतने सुन्दर संकलन के लिए वन्दना जी को बहुत-बहुत बधाई ! वे इसी तरह स्तरीय लेखन में निरत रहें और हमें इसी प्रकार अनमोल
अद्वितीय कहानियाँ पढ़ने को मिलती रहें यही हमारी शुभकामना है ! आपकी अगली पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी वन्दना जी ! हार्दिक अभिनन्दन !
साधना वैद
सुधिनामा पर...


इस तरह.....
......

एक और निवेदन आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले सोमवारीय विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का
लिंक हमें आगामी शनिवार की शाम तक प्रेषित करें। आप हम तक सूचना पहुँचाने के लिए ब्लॉग सम्पर्क फार्म का उपयोग करे...
 तो आइये एक कारवां बनायें। 
एक मंच,सशक्त मंच !

 सादर

कुलदीप ठाकुर

 “जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं.
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.”
धन्यवाद। 


13 टिप्‍पणियां:

  1. भाई कुलदीप जी
    शुभ प्रभात
    बेहतरीन प्रस्तुति बनाई आपने
    रचनाए भी तात्कालिक हैं
    प्रथम पूज्य राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गु्प्त जी को
    आदरांजली
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. कुलदीप जिनका सुंदर संकलन ... बहतीं हलचल ...
    आभार मुझे भी जगह देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत शानदार प्रस्तुति,शानदार।
    गुप्त जी को उनकी वर्षी पर सादर श्रृद्धा युक्त भावांजली।

    जवाब देंहटाएं
  4. कुलदीप जी,राष्ट्रकवि के अविस्मरणीय संदेश के साथ यह संकलन प्रभावशाली रहा .आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
    गुप्त जी को सादर श्रृद्धा सुमन!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंंदर प्रस्तुति.. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गु्प्त जी को भावांजलि
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. राष्ट्रकवि गुप्त जी को श्रद्धांजलि....
    बहुत उम्दा लिंक संकलन एवं सुन्दर,बेहतरीन प्रस्तुति करण

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी लिखी पुस्तक समीक्षा को इसमें सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी ! सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  9. कुलदीप जी बहुत ही सुंदर संकलन प्रस्तुत किया है आपने

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह भाई कुलदीप जी शानदार प्रस्तुति। राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की अमर पंक्तियों से सुसज्जित आज की प्रस्तुति का शीर्षक सार्थक है। कविवर मैथलीशरण गुप्त को सादर नमन।
    आपका सूत्र -संकलन सराहनीय है। इस अंक में चयनित समस्त रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं

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