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बुधवार, 10 जनवरी 2018

908...जाड़े की गुनगुनी दोपहर चहकती ..

१०जनवरी२०१७
।।प्रातः वंदन।।
अलमस्त सुबह के नज़ारे ही कुछ और है

आलम यह कि सूरज भी लिहाफ में जा बैठे

खूबसूरती यह कि

चाय की चुस्कियों में वो सकून पर..

नजारों ने कच्ची धूप की भी सिफारिश की है..



तो फिर आज इसी सिफारिश के साथ हम नजर डालते है आज की लिंकों की ओर..✍



प्रथम लिंक के अंतर्गत है रचनाकार आदरणीया दिव्या शुक्ला जी..



--------------------------------------

तुम जानते तो हो ही न मीता तुम्हे क्या बताना

---------जाड़े की गुनगुनी दोपहर चहकती गुनगुनाती हैं

तो शामे एक गहरी उदासी से भरने लगती है -------------------रात गहराती है और अवसाद से भर जाती है

द्वितीय रचनाकार विक्रम प्रताप सिंह 'सचान'


यूँ तो लोककलायें हमारी संस्कृति की ध्वजवाहक है। किन्तु आधुनिकता से निरन्तर संघर्ष कर क्षरित होने को मजबूर है।  सदियों पहले "नगर सेठों" का प्रभाव हुआ करता था। नगर वधुएँ भी हुआ करती थी। तब  लोककलायें अमूमन नगर सेठो के अधीन हुआ करती थी। उनकी महफ़िलो की साज सज्जा और 

तृतीय है.. आदरणीया जेन्नी शबनम जी,



ग़ैरों की दास्ताँ क्यों सुनूँ?  

अपनी राह क्यों न बनाऊँ?  

जो पसंद बस वही क्यों न करूँ?  

दूसरों के कहे से जीवन क्यों जीऊँ?  

मुमकिन है ऐसे कई सवाल कौंधते हों तुममें  

मुमकिन है इनके जवाब भी हों तुम्हारे पास  

जो तुम्हारी नज़रों में सटीक है  

कार्टून :- लेखकों-प्रकाशकों का पोज़ ख़तरे में है



चतुर्थी है..   रचनाकार पूजा शर्मा राव जी


वक़्त की एक

महीन दहलीज़ थी

बाहर खुली हवा थी

आसमान था

हथेली से छू जा सके वाले

रंग थे

अंत में रूबरू होते है रचनाकार रवीन्द्र सिंह यादव जी की रचना..



कैसा दौर आया है

आजकल

जिधर देखो उधर

हवा गर्म हो रही है

आया था चमन में

सुकून की सांस लेने

वो देखो शाख़-ए-अमन पर


नहीं करनी निंदा किसी की 
पर सच..

सच से भी नहीं एतराज़ है..।

।।इति शम।।

पम्मी सिंह

धन्यवाद..✍


हम एक नया कार्यक्रम करना चाहते हैं आपके साथ
विस्तृत विवरण कल गुरुवार की प्रस्तुति मे देखिए
कार्यक्रम है....
एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ 
हम-कदम
...भवदीय...
यशोदा

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    एक और बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. खूबसूरत पंक्तियाँ वाह्ह..."सूरज भी लिहाफ़ में जा बैठे"👌
    सुप्रभातम् पम्मी जी,
    बेहद सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता तैयार किया है आपने सभी रचनाएँ विविधापूर्ण रंग समेटे आज के अंक को सुवासित कर रही हैं। सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. चाय की चुस्कियों के साथ...
    बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति,बधाई और आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह पम्मी जी खूबसूरत प्रस्तुति लेकर आयीं हैं आप। समसामयिक रचनाओं का कौशलपूर्ण चयन।
    मेरी रचना को आज लिंकों का आनंद में सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह सुंदर प्रस्तुति सूरज जी लिहाफ मे बैठे हैं तभी तो सब के तन पर उनी वस्त्र बढते जा रहे हैं।
    शुभ दिवस।

    जवाब देंहटाएं
  7. 👏👏👏👏👏वाह क्या खूब बानगी है ....
    सूरज लिहाफ मै जा बैठा
    चाय की चुस्की जारी है
    कच्ची धूप हिय को भाती
    सर्द ऋतु अती भारी है !

    जवाब देंहटाएं
  8. शुभप्रभात.....
    सुंदर संकलन.....
    आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  9. अच्छी प्रस्तुति.. सुरज भी लिहाफ जा बैठा ..रोचक पंक्ति..!

    जवाब देंहटाएं
  10. विविधता से परिपूर्ण अंक ! सादर धन्यवाद आदरणीय पम्मी जी। सभी रचनाएँ पढ़ीं । अच्छी लगीं सब...बधाई रचनाकारों को ।

    जवाब देंहटाएं
  11. ठंड तो चरम पर है परन्तु लिहाफ ओढ़ कर आपके द्वारा प्रस्तुत भूमिका एवं लिंकों को पढ़ कर आनंद आ गया. सुन्दर प्रस्तुति पम्मी जी .

    जवाब देंहटाएं
  12. चाय की चुस्कियों के साथ...
    बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन

    जवाब देंहटाएं
  13. समसामयिक बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं

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